जीवन-परिचय –
श्यामनारायण पाण्डेय का जन्म श्रावण कृष्ण पंचमी को वर्ष 1907 डुमराँव गाँव,मझोला उत्तर में प्रदेश में हुआ था। आरम्भिक शिक्षा के बाद श्यामनारायण पाण्डेय संस्कृत अध्ययन के लिए. काशी (बनारस) आए। काशी विद्यापीठ से वे साहित्याचार्य की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए। स्वभाव से सात्विक, हृदय से विनोदी और आत्मा से निर्भीक स्वभाव वाले पाण्डेय जी के स्वस्थ-पुष्ट व्यक्तित्व में शौर्य, सत्त्व और सरलता का अनूठा मिश्रण था। उनके संस्कार द्विवेदीयुगीन, दृष्टिकोण उपयोगितावादी और भाव-विस्तार मर्यादावादी थे।
लगभग दो दशकों से ऊपर वे हिन्दी कवि-सम्मेलनों के मंच पर अत्यन्त लोकप्रिय रहे। उन्होंने आधुनिक युग में वीर काव्य की परम्परा को खड़ी बोली के रूप में प्रतिष्ठित किया। पाण्डेय जी का देहान्त वर्ष 1991 में डुमराँव नामक ग्राम में हुआ था।
साहित्यिक परिचय –
श्यामनारायण पाण्डेय आधुनिक काव्यधारा के प्रमुख वीर कवियों में से एक थे। वीर . काव्य को इन्होंने अपनी कविताओं का मुख्य विषय बनाया। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को अपने काव्य का आधार बनाकर इन्होंने पाठकों पर गहरी छाप छोड़ी है।
कृतियाँ (रचनाएँ) –
श्यामनारायण पाण्डेय ने चार उत्कृष्ट महाकाव्यों की रचना की थी, जिनमें से ‘हल्दीघाटी (वर्ष 1937-39)’ और ‘जौहर (वर्ष 1939-44)’ को अत्यधिक प्रसिद्धि मिली। ‘हल्दीघाटी’ में वीर राणा प्रताप के जीवन और ‘जौहर’ में चित्तौड़ की रानी पद्मिनी के आख्यान हैं। इनके अतिरिक्त पाण्डेय जी की रचनाएँ निम्नलिखित हैं
तुमुल (वर्ष 1948), रूपान्तर (वर्ष 1948), आरती (वर्ष 1945-46), ‘जय हनुमान’ (वर्ष 1956)।तुमुल त्रेता के दो वीर’ नामक खण्ड काव्य का परिवर्धित संस्करण है, जबकि ‘माधव’, ‘रिमझिम’, आँसू के कण’ और ‘गोरा वध’ उनकी प्रारम्भिक लघु कृतियाँ है।
भाषा-शैली –
श्यामनारायण पाण्डेय ने अपने काव्यों में खड़ी बोली का प्रयोग किया है। श्यामनारायण पाण्डेय वीर रस के सुविख्यात हिन्दी कवि थे। इनके काव्यों में वीर रस के साथ-साथ करुण रस का गम्भीर स्थान है। पाण्डेय जी ने काव्य में गीतात्मक शैली के साथ-साथ मुक्त छन्द का प्रयोग किया है। भाषा में सरलता और सहजता इस स्तर पर है कि उनके सम्पूर्ण काव्य के पाठन में चित्रात्मक शैली के गुण दिखाई पड़ते हैं।
हिन्दी साहित्य में स्थान –
श्यामनारायण पाण्डेय जी हिन्दी साहित्य के महान् कवियों में से एक हैं। इन्होंने इतिहास को आधार बनाकर महाकाव्यों की रचना की, जोकि हिन्दी साहित्य में सराहनीय प्रयास रहा। द्विवेदी युग के इस रचनाकार को वीरग्रन्थात्मक काव्य सृजन के लिए हिन्दी साहित्य में अद्वितीय स्थान दिया जाता है।