उत्तर –
परिभाषा – प्रिय व्यक्ति या मनचाही वस्तु के नष्ट होने या उसका कोई अनिष्ट होने पर हृदय शोक से भर जाए, तब ‘करुण रस’ की निष्पत्ति होती है। इसमें विभाव, अनुभाव व संचारी भावों के संयोग से शोक स्थायी भाव का संचार होता है।
उदाहरण –
“अभी तो मुकुट बँधा था माथ, हाय रुक गया यहीं संसार,हुए कल ही हल्दी के हाथ। बना सिन्दूर अनल अंगार।
खुले भी न थे लाज के बोल, वातहत लतिका यह सुकुमार,
खिले थे चुम्बन शून्य कपोल ।। पड़ी है छिन्नाधार!
स्पष्टीकरण –
1. स्थायी भाव शोक
2. विभाव
(i) आलम्बन विभाव मृत पति
(ii) आश्रयालम्बन नवविवाहित विधवा
(iii) उद्दीपन मुकुट का बँधना, हल्दी के हाथ होना, लाज के बोल न खुलना।
3. अनुभाव वायु से आहत लता के समान नायिका का बेसहारा और बेसुध पड़े रहना।
4. संचारी भाव दैन्य, स्मृति, जड़ता, विषाद आदि ।
इस प्रकार यहाँ ‘करुण रस’ की अभिव्यक्ति हुई है।