जीवन-परिचय –
हिन्दी साहित्य में आधुनिक मीरा के नाम से प्रसिद्ध कवयित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा का जन्म वर्ष 1907 में उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद शहर में हुआ था। इनके पिता गोविन्दसहाय वर्मा भागलपुर के एक कॉलेज में प्रधानाचार्य थे। माता हेमरानी साधारण कवयित्री थीं एवं श्रीकृष्ण में अटूट श्रद्धा रखती थीं। इनके नाना जी को भी ब्रज भाषा में कविता करने की रुचि थी। नाना एवं माता के गुणों का महादेवी पर गहरा प्रभाव पड़ा। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा इन्दौर में और उच्च शिक्षा प्रयाग में हुई थी। नौ वर्ष की अल्पायु में ही इनका विवाह स्वरूपनारायण वर्मा से हुआ, किन्तु इन्हीं दिनों इनकी माता का स्वर्गवास हो गया, ऐसी विकट स्थिति में भी इन्होंने अपना अध्ययन जारी रखा।
अत्यधिक परिश्रम के फलस्वरूप इन्होंने मैट्रिक से लेकर एम. ए. तक की परीक्षाएँ प्रथम श्रेणी में ही उत्तीर्ण कीं। वर्ष 1933 में इन्होंने प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्रधानाचार्या पद को सुशोभित किया। इन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए काफी प्रयास किया, साथ ही नारी की स्वतन्त्रता के लिए ये सदैव संघर्ष करती रहीं। इनके जीवन पर महात्मा गाँधी का तथा कला साहित्य साधना पर रवीन्द्रनाथ टैगोर का प्रभाव पड़ा।
साहित्यिक परिचय –
महादेवी जी साहित्य और संगीत के अतिरिक्त चित्रकला में भी रुचि रखती थीं। सर्वप्रथम इनकी रचनाएँ चाँद नामक पत्रिका में प्रकाशित हुईं। ये ‘चाँद’ पत्रिका की सम्पादिका भी रहीं। इनकी साहित्य साधना के लिए भारत सरकार नेइन्हें पद्मभूषण की उपाधि से अलंकृत किया। इन्हें ‘सेकसरिया’ तथा ‘मंगलाप्रसाद’ पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। वर्ष 1983 में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा इन्हें एक लाख रुपये का भारत-भारती पुरस्कार दिया गया तथा इसी वर्ष काव्य-ग्रन्थ यामा पर इन्हें ‘भारतीय ज्ञानपीठ’ पुरस्कार प्राप्त हुआ। ये जीवनपर्यन्त प्रयाग में ही रहकर साहित्य साधना करती रहीं। आधुनिक काव्य के साज-श्रृंगार में इनका अविस्मरणीय योगदान है। इनके काव्य में उपस्थित विरह-वेदना अपनी भावनात्मक गहनता के लिए अमूल्य मानी जाती है। इसी कारण इन्हें आधुनिक युग की मीरा भी कहा जाता है। करुणा और भावुकता इनके काव्य की पहचान है। 11 सितम्बर, 1987 को यह महान् कवयित्री पंचतत्त्व में विलीन हो गईं।
भाषा-शैली –
महादेवी जी ने अपने गीतों में स्निग्ध और सरल, तत्सम प्रधान खड़ी बोली का प्रयोग किया है। इनकी रचनाओं में उपमा, रूपक, श्लेष, मानवीकरण आदि अलंकारों की छटा देखने को मिलती है। इन्होंने भावात्मक शैली का प्रयोग किया, जो सांकेतिक एवं लाक्षणिक है। इनकी शैली में लाक्षणिक प्रयोग एवं व्यंजना के प्रयोग के कारण अस्पष्टता व दुरूहता दिखाई देती है।
हिन्दी साहित्य में स्थान –
महादेवी जी की कविताओं में नारी-हृदय की कोमलता और सरलता का बड़ा ही मार्मिक चित्रण हुआ है। इनकी कविताएँ संगीत की मधुरता से परिपूर्ण हैं। इनकी कविताओं में एकाकीपन की भी झलक देखने को मिलती है। हिन्दी साहित्य में पद्य लेखन के साथ-साथ अपने गद्य लेखन द्वारा हिन्दी भाषा को सजाने-सँवारने तथा अर्थ-गाम्भीर्य प्रदान करने का जो प्रयत्न इन्होंने किया है, वह प्रशंसा के योग्य है। हिन्दी के रहस्यवादी कवियों में इनका स्थान सर्वोपरि है।