उत्तर –
परिभाषा – किसी पदार्थ या व्यक्ति की असाधारण आकृति, वेशभूषा, चेष्टा आदि को देखकर सहृदय में जो विनोद का भाव जाग्रत होता है, उसे हास कहा जाता है। यही हास जब विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों से पुष्ट हो जाता है, तो उसे ‘हास्य रस’ कहा जाता है।
उदाहरण –
– “नाना वाहन नाना वेषा। विंहसे सिव समाज निज देखा ।।
कोउ मुखहीन, बिपुल मुख काहू । बिन पद-कर कोउ बहु पदबाहू। ।”
स्पष्टीकरण –
1. स्थायी भाव हास
2. विभाव(i) आलम्बन विभाव शिव समाज(ii) आश्रयालम्बन स्वयं शिव(iii) उद्दीपन विचित्र वेशभूषा
3. अनुभाव शिवजी का हँसना
4. संचारी भाव रोमांच, हर्ष, चापल्य अतः यहाँ ‘हास्य रस’ की निष्पत्ति हुई है।